- सिंधु नदी के प्रवाह क्षेत्र में ऊंचाई और सूखे की घटना के बीच संबंध को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने मौसम संबंधी मापदंडों का किया उपयोग
- अध्ययन में यह साबित हुआ है कि ऊचाई और सूखे के बीच एक मजबूत संबंध है, जहां निचले क्षेत्रों में वर्षा के रुझानों को देखा जा रहा है वहीं ऊंचाई वाली भूमि पर सूखे की घटनाएं हो रहीं हैं।
- प्रभावी सूखे के जोखिम मूल्यांकन और जल प्रबंधन के लिए उच्च क्षेत्रों पर सूखे के प्रभाव को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Video Byte – https://drive.google.com/file/d/1MR6E56MW1uT7qzOp7q1zV7RSi7ZzwPmJ/view
मंडी, 13 जून 2023: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने ऊंचाई और सूखे की विशेषताओं के बीच संबंधों का अध्ययन किया है। भारत में सिंधु नदी के प्रवाह क्षेत्र पर केंद्रित इस अध्ययन ने इस क्षेत्र में जल प्रबंधन और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के लिए एक बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की है।
इस रिसर्च के निष्कर्षों को जर्नल एटमॉस्फेरिक रिसर्च में डॉ. दीपक स्वामी, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी, डॉ. विवेक गुप्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी और आईआईटी जम्मू के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. नितिन जोशी के साथ आईआईटी मंडी के पीएचडी स्कॉलर श्री अमित दुबे के सहयोग से प्रकाशित किया गया है।
जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ ही पानी की मांग में भी लगातार वृद्धि हो रही है किन्तु इसकी उपलब्धता सीमित है। इसके साथ ही वैश्विक जलवायु परिवर्तन और बाढ़ और सूखे जैसे अत्यधिक जल संबंधित घटनाओं के कारण मानव समाज को खतरा पैदा हो रहा है।
ऊँचाई के संबंध में सूखे की प्रवृत्तियों को समझने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आइआइटी मंडी के डॉ. दीपक स्वामी ने कहा, “भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1951 से 2016 की अवधि में सूखा होने की आवृत्ति में वृद्धि देखी गई है और बहुत से क्षेत्रों में हर दशक में दो से अधिक सूखे की स्थिति पैदा हुयी है। इसलिए प्रभावी जल प्रबंधन योजना के लिए सूखे की गतिशीलता को समझना महत्वपूर्ण है।”
उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को विशेष रूप से सूखे की स्थिति के लिए संवेदनशील माना जाता है। अलग-अलग समय पर सूखे की प्रवृत्ति और ऊंचाई के बीच संबंध का विश्लेषण करने से सूखे की भविष्यवाणी करना और उनके प्रभावों को कम करने के लिए नीतियों को तैयार करने में मदद मिल सकती है।
इस रिसर्च के लिए आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने सिंधु नदी के प्रवाह क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है। यह क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि उत्पादकता और जल आपूर्ति के मामले में अत्यधिक महत्व रखता है। इसके अलावा इस क्षेत्र के भीतर ऊंचाई की एक विस्तृत श्रृंखला है जो कि 93 से 8,489 मीटर तक है। ऊंचाई और सूखे की विशेषताओं के बीच संबंध का पता लगाने के लिए यहाँ एक आदर्श स्थिति मिलती है।
शोध टीम ने सूखे के पैटर्न का अध्ययन करने के लिए (1979-2020) 42 वर्षों की मासिक वर्षा और अधिकतम और न्यूनतम तापमान के व्यापक डेटा का उपयोग करने के लिए सांख्यिकीय तकनीकों का इस्तेमाल किया है। सूखे की मात्रा का निर्धारण जलवायु जल संतुलन पर आधारित सूखे के संकेतक का उपयोग करके किया गया था जो सूखे को समझने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
अपने शोध के बारे में बात करते हुए आईआईटी मंडी के डॉ. विवेक गुप्ता ने कहा, “हमने सूखे और ऊंचाई के बीच एक मजबूत संबंध को देखा है। 2,000 मीटर से नीचे के क्षेत्रों में नमीं की स्थिति देखी गई, जबकि 2,000 और 6,000 मीटर के बीच की ऊंचाई में शुष्क स्थिति देखी गई ई । हालांकि, 4,000 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर सूखे की दर धीमी थी।“
इसके अलावा शोध के निष्कर्षों ने अलग-अलग मौसमों में सूखे की स्थितियों में महत्वपूर्ण विविधता पर प्रकाश डाला है। मानसून और मानसून के बाद के मौसम में अधिकतर क्षेत्रों में नमी की स्थितियां देखी गईं जबकि प्री-मानसून मौसम में सूखे की स्थितियों वाले अधिक क्षेत्र देखे गए। अध्ययन क्षेत्र में अत्यधिक सूखे की स्थितियां 1979-2020 तक 0% से 5% तक विस्तारित हुईं हैं। अंततः शोध के नतीजे उच्च ऊचाईयों वाले क्षेत्र के सूखेपन की ओर इशारा करते हैं, जबकि नमीं वाले क्षेत्र कम ऊचाईयों वाले क्षेत्र से जुड़े हैं।
यह द्रष्टिकोण भारत के लिए विशेष महत्व रखता हैं क्योंकि वर्षा आधारित कृषि का प्रचलन सिंधु नदी प्रवाह क्षेत्र के ऊंचे इलाकों में ज्यादा है। इस क्षेत्र का भूगोल जल भंडारण और उचित सिंचाई बुनियादी ढांचे को सीमित करता है जिससे यह क्षेत्र पानी की कमी के प्रति संवेदनशील हो जाता है और शुष्क अवधि के दौरान यहां फसल की पैदावार कम हो जाती है। सूखे के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए और प्रभावी नीति निर्माण के लिए मौसम संबंधी घटकों पर ऊंचाई के प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है।
IIT Mandi Researchers Uncover the Relationship between Drought Occurrence and Altitudinal Variation in the Indus River Basin
- Researchers used meteorological parameters to understand the connection between elevation and drought occurrence in the Indus River Basin
- The study reveals a strong correlation between elevation and drought, with wetting trends observed in low-lying areas and drying trends prevalent in the highlands
- Understanding the impact of elevation on drought is important for effective drought risk assessment and water management
Video Byte – https://drive.google.com/file/d/1MR6E56MW1uT7qzOp7q1zV7RSi7ZzwPmJ/view
Mandi, 13th June 2023: Indian Institute of Technology Mandi researchers have studied the relationship between the elevation and the drought characteristics. The study, centred on the Indus River basin in India, provides valuable insights into water management and climate adaptation strategies for this region.
These findings have been published in the journal Atmospheric Research in a paper co-authored by Dr. Deepak Swami, Associate Professor, School of Civil and Environmental Engineering, IIT Mandi, Dr. Vivek Gupta, Assistant Professor, School of Civil and Environmental Engineering, IIT Mandi and Dr. Nitin Joshi from Department of Civil Engineering, IIT Jammu along with their Ph. D scholar Mr. Amit Dubey from IIT Mandi.
With the exponential increase in population, there is growing demand for water, but limited availability. This, coupled with global climate change and extreme water-related events like floods and drought, poses a threat to human society.
While highlighting the importance of understanding drought trends with respect to elevation, Dr. Deepak Swami, IIT Mandi, said, “According to a report by India’s Ministry of Earth Sciences, the period from 1951 to 2016 witnessed an increase in the frequency of droughts in India, with more than 2 droughts per decade in many areas. Understanding drought dynamics is therefore crucial for effective water management and planning.”
High-altitude regions are particularly sensitive to the effects of climate change, like droughts. Analysing the relationship between drought trends and elevation across different time scales can help predict droughts and frame policies to mitigate their effects.
IIT Mandi researchers have focused on the Indus River basin. This basin holds immense importance in terms of agricultural productivity and water supply in the Indian subcontinent. Furthermore, the wide range of elevations within the basin, ranging from 93 to 8,489 meters, provides an ideal setting to explore the connection between elevation and drought characteristics.
The research team employed statistical techniques using extensive data on monthly precipitation, and maximum and minimum temperatures spanning 42 years (1979–2020) to study drought patterns. The drought quantification was done using a drought indicator based on climatic water balance, which is integral to understand droughts.
Speaking about their research, Dr. Vivek Gupta, IIT Mandi, said, “We saw a strong correlation between drought and elevation. Areas below 2,000 meters experienced wetting trends, while altitudes between 2,000 and 6,000 meters showed drying trends. However, elevations above 4,000 meters had a slower rate of drying.”
Furthermore, the research findings highlighted the significant heterogeneity in drought trends across different seasons. Monsoon and post-monsoon seasons experienced larger areas with wetting trends, while the pre-monsoon season saw a larger area with drying trends. Notably, extreme drought frequencies in the study region ranged from 0% to 5% from 1979–2020. Ultimately, the findings of the study point towards dryness of the region at higher altitudes whereas wetting is associated with lower elevations.
These insights hold particular importance for India, as rain-fed agriculture is prevalent in the highlands of the Indus River basin. The topography of the region restricts water storage and proper irrigation infrastructure, making it vulnerable to water scarcity and decreasing crop yields during dry periods. Understanding the effect of elevation on meteorological variables is crucial for effective policy formulation to mitigate the negative impacts of drought.
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