मंडी, जनवरी 2023: संगीत में हमारे मन की भावना बदलने की ताकत है और यह जगजाहिर है कि लोग मन की भावना में उत्साह जगाने या उदासी से उबरने के लिए अक्सर संगीत का सहारा लेते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि हम कभी-कभी उदास संगीत सुनना क्यों पसंद करते हैं जबकि हम सभी जिन्दगी की उदासी कम करना चाहते हैं?
उदासी से बचना मनुष्य का सहज स्वाभाव है। लेकिन जब मन की इस विशेष भावना की अभिव्यक्ति कला के माध्यम से हो तो एक अजीब और स्थायी आकर्षण पैदा होता है। इसे ‘ट्रैज्डी पैराडाॅक्स’ कहा गया है जिसको लेकर सदियों से दार्शनिक भी उलझन में है। यह अनुमान लगाया गया है कि ‘ट्रैज्डी पैराडाॅक्स’ की सामान्य वजह उदास धुनों में एक सौंदर्य आकर्षण का होना है। तो क्या यह इसका प्रमाण है कि ‘ए थिंग आॅफ ब्यूटी इज़ ज्वाॅय फाॅर एवर’ या फिर उदास संगीत का इससे अधिक गहरा, जैविक कारण है जो हमें बेहतर महसूस कराता है?
आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा के मार्गदर्शन में हाल का यह शोध उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने का एक गंभीर प्रयास है।
प्रोफेसर लक्ष्मीधर बेहरा ने कहा, ‘‘हम यह जानना चाहते थे कि किसी अप्रिय अनुभव या याद के दौरान उदास संगीत सुनने की हमारे मस्तिष्क पर क्या प्रतिक्रिया होती है।’’ शोधकर्ताओं ने यह जानने के लिए इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राफी (ईईजी) से विभिन्न परिस्थितियों में बीस लोगों की मस्तिष्क की गतिविधियों को रिकाॅर्ड किया। उन्होंने मस्तिष्क के उन हिस्सों पर ध्यान केंद्रित किया जो भावना और याद को प्राॅसेस करते हैं। ये हिस्से हैं: सिंगुलेट कॉर्टेक्स कॉम्प्लेक्स और पैराहिपोकैम्पस।
चुने गए 20 प्रतिभागी को संगीत का कोई प्रशिक्षण नहीं था ताकि वे चुने गए संगीत से उत्पन्न प्री-प्रोग्राम्ड रिएक्शंस से बचें। तीन मनोदशाओं (स्टेट) में उनके ईईजी रिकार्ड किए गए। पहले में बिना किसी इनपुट – बेसलाइन ईईजी रिकॉर्ड किया गया। दूसरे में तब ईईजी रिकाॅर्ड किया गया जब प्रतिभागियों ने एक दुखद अनुभव को याद किया – द सैड ऑटोबायोग्राफिकल रिकॉल और इसके बारे में लिखा या एसएआर की स्थिति। तीसरे में ईईजी तब रिकाॅर्ड गया जब उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक राग मिश्र जोगिया राग सुनाया गया। इस संगीत का चयन पांच संगीत विशेषज्ञों के एक पैनल ने किया था और यह राग करुण रस (दुखद भावनाओं) के संचार के लिए जाना जाता है।
ईईजी मस्तिष्क की विद्युतीय गतिविधि जिसे आमतौर पर मस्तिष्क की तरंगें कहते हैं उन्हें रिकाॅर्ड करता है। यह ज्ञात है कि मस्तिष्क की तरंगें पांच प्रकार की होती हैं – अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा और थीटा। प्रत्येक एक अलग मूड/मनोदशा व्यक्त करती है। उदाहरण के लिए वर्तमान संदर्भ में अल्फा का संबंध संज्ञान से प्राप्त सूचना प्राॅसेस करने से है जबकि गामा का संबंध किसी घटना की याद प्राॅसेस करने से है।
शोधकर्ताओं ने यह देखा कि किसी दुखद अनुभव को याद करते समय (यानी एसएआर के दौरान) गामा तरंग की गतिविधि बढ़ जाती है, जबकि उदास संगीत सुनने से मस्तिष्क की अल्फा गतिविधि में वृद्धि होती है।
अपने अवलोकनों के बारे में डॉ. बेहरा ने बताया, “मिश्र जोगिया राग (उदास संगीत) सुनने से मस्तिष्क के अंदर भावनाओं और यादों के प्राॅसेस होने में वृद्धि दिखती है। ऐसा तीन-चैनल फ्रेमवर्क के माध्यम से होता है जिसमें अल्फा तरंगों की भूमिका है। ऐसे मैकेनिज्म में भावना और याद प्राॅसेस करने वाले मस्तिष्क के विशेष हिस्सों में ग्लोबल और लोकल कनेक्टिविटी और स्फूर्ति बढ़ जाती है।’’
शोध के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि उदास संगीत सुनने के दौरान मस्तिष्क की गतिविधि एसएआर स्टेट और बेसलाइन रेस्टिंग स्टेट दोनों की तुलना में विशिष्ट और अलग होती है। उदास संगीत में कोपिंग मैकेनिज्म बनने की वजह अल्फा स्टेट में भावनाओं और यादों का बेहतर प्राॅसेस होना है। ‘‘हालांकि कोपिंग इफेक्ट का सहज संबंध केवल संगीत के सौंदर्य आकर्षण से नहीं है, जैसा कि पहले माना जाता था, बल्कि यह उदास संगीत का अंदरूनी गुण है,’’ पीएच.डी. स्काॅलर श्री आशीष गुप्ता ने बताया है।
संगीत हमारी भावनाओं और संज्ञान क्षमताओं को प्रभावित कर सकता है यह जानकारी तो स्पष्ट है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि उदास संगीत और मस्तिष्क के बीच के संबंध को पूरी तरह समझने के लिए और शोध करने होंगे। ईईजी के माध्यम से हुए अध्ययन से मस्तिष्क के कॉर्टिकल हिस्से की गतिविधि पर उदास संगीत की प्रतिक्रिया के बारे में अंदरूनी जानकारी मिली है। शोधकर्ता यह भी चाहते हैं कि भविष्य में एफएमआरआई स्कैन की मदद से अधिक गहरे सब-कॉर्टिकल हिस्सों का अध्ययन किया जाए। ‘‘वर्तमान अध्ययन मनुष्य के संज्ञान कार्यों पर भारतीय राग के प्रभाव का पता लगाने के लिए हो रहे शोध का एक हिस्सा है। यह शोध कार्य संगीत से उपचार, संगीत प्रशिक्षण आदि के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसे कार्यों में संगीत एक चिकित्सा उपकरण का काम करता है,’’ प्रोफेसर ब्रज भूषण ने बताया।
ये ज्ञानवर्धक अवलोकन हाल में एक ओपन-एक्सेस जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित किए गए। इस शोधपत्र का सह-लेखन आशीष गुप्ता, प्रोफेसर ब्रज भूषण और प्रोफेसर बेहरा ने किया है।
Why does listening to sad music help in times of sadness? IIT Mandi Director’s research sheds light on ‘Tragedy Paradox’
MANDI, January 2023: Music has a powerful ability to affect our emotions, and it’s no secret that people often turn to music to boost their mood or to help them through a tough time. But why do we sometimes seek out sad music, even when we try to minimize sadness in our lives?
Despite our natural inclination to avoid sadness, this particular emotion has a strange and enduring appeal when expressed through art. This so-called “tragedy paradox” has puzzled philosophers for centuries. It has been postulated that the tragedy paradox arises simply because of the aesthetic appeal of gloomy tunes. Is it proof that a thing of beauty is a joy forever, or is there a more profound, biological reason for sad music making us feel better?
A recent study led by Prof. Laxmidhar Behera, now Director of IIT Mandi, set out to answer the above question.
“We wanted to find out how the brain reacts when listening to sad music after having an adverse experience or memory,” said Prof. Laxmidhar Behera. For this, the researchers used electroencephalography (EEG) to measure the brain activity of twenty people under different conditions. They focused on brain regions involved in emotion and memory processing: the cingulate cortex complex and the parahippocampus.
The twenty participants had no musical training to avoid pre-programmed reactions to the selected music. EEG was measured under three states. In the first, EEG was recorded with no input – the baseline. In the second state, EEG was recorded as the participants recalled a sad experience and wrote about it – the Sad Autobiographical Recall or SAR condition. In the third, EEG was measured when they were made to listen to an Indian Classical Raga, Mishra Jogiya Raga. The music was selected by a panel of five music experts and is known for invoking Karuna Rasa (sad emotions).
EEG measures the electrical activity of the brain, commonly known as the brain waves. It is known that brain waves are of five types – alpha, beta, gamma, delta, and theta, representing a different mood/state of mind. Within the current context Alpha is, for example, associated with cognitive information processing, while gamma is associated with episodic memory processing.
The researchers found that when recalling a sad experience (i.e. during SAR), there is enhanced gamma wave activity, while listening to sad music leads to increased alpha brain activity.
Explaining their observations, Prof. Behera said, “Listening to Mishra Jogiya Raga (sad music) appears to promote processing of emotions and memories in the brain, through a three-channel framework involving the alpha brain wave. These mechanisms include increased global and local connectivity in brain areas involved in emotion and memory processing, and increased alertness.”
The finding shows that the brain’s activity when listening to sad music is unique and distinct from both the SAR state and the baseline resting state. The coping mechanism of sad music arises from better processing of emotions and memories under the alpha state. “The coping effects are not simply due to the aesthetic appeal of the music, as previously believed, but an inherent property of sad music”, explains Mr. Ashish Gupta a Ph.D. scholar.
While it is clear that music can affect our emotions and cognitive abilities, the scientists believe that more research is needed to understand the relationship between sad music and the brain entirely. While EEG studies have provided insights into the brain response to sad music in terms of brain cortical activity, the researchers also intend to study the deeper sub-cortical areas using fMRI scans in the future. “The current study is a part of ongoing work investigating the effect of Indian Raga on Human cognitive functions.
This work has significance for music therapy, music training, etc. where music is used or can be used as a therapeutic tool,” adds Prof. Braj Bhushan.
These interesting observations have been recently published in the open-access journal PLOS One, in a paper co-authored by Ashish Gupta, Prof Braj Bhushan, and Prof Behera.
Leave a Reply