केवल आभासीय दुनिया में न मनाया जाए-फादर्स डे, असल जिंदगी में भी हो आत्मसात, समस्त पिता व पुत्र को समर्पित……

मनीषा झा खड़गपुरः- आज जैसे ही मेरे बेटे मोहित, जो कि खड़गपुर में स्थित भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आई.आई.टी) का प्रथम वर्ष का इंजीनियरिंक का छात्र है, ने अपने पिता को स्वयं से तैयार किया हुआ हैप्पी फादर्स डे का कार्ड दिया, वे अत्यन्त भावुक हो गए और उन्होंने अपने बेटे को गले से लगा लिया। यह पिता और पुत्र के बीच का भावनात्मक लगाव था कि पुत्र ने अपने अत्यंत बिजी शेड्यूल में समय निकालकर अपने पिता के लिए कार्ड बनाया।
संयोग की बात देखिए मैंने आज ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर के वरिष्ठ हिंदी अधिकारी, डॉ. राजीव कुमार रावत का लेख पिता धर्मः पिता स्वर्गः पढ़ा, जिसमें उन्होंने पिता की महत्व को दर्शाते हुए लिखा कि एक पिता अपनी संतान के जीवन को दिशा देने वाले पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाता है।
यह पढ़कर मन में विचार आया कि क्यों न मैं भी इस विशेष दिवस पर कुछ लिखूं। हालांकि मैं पाश्चात्य परम्परा से प्रेरित मदर्स डे, फादर्स डे, वूमेंन डे आदि मनाने की पक्षधर नहीं हूँ। इसका मूल कारण है माता-पिता या औरतों का सम्मान सिर्फ मदर्स डे, फादर्स डे या वूमेन डे मनाने से नहीं होगा, बल्कि उनका सम्मान हर वर्ष हर दिन किया जाना चाहिए। फिर भी आज मैं किसी विरोधाभास में नहीं पड़कर, आज हर संतान के जीवन में पिता के महत्व पर रोशनी डालना चाहती हूँ। पिता गरीब हो या अमीर, प्रत्येक परिस्थिति में अपनी संतानों की सुख-सुविधाओं का इंतजाम करने का भरसक प्रयास करता है। बाल्यवस्था में प्रत्येक संतान को अपने पिता के काम पर से लौटने का बेसब्री से इंतजार रहता है ताकि उनके द्वारा लाई गई मिठाई, समोसा, चॉकलेट आदि का भरपूर आनंद ले सके तथा दिन-भर अपने साथ घटने वाली छोटी-छोटी घटनाओं की जानकारी दे सके। पिता का हृदय बहुत बड़ा होता है वो हर गलती को बड़ी सहजता से माफ कर देता है। किसी कवि ने पिता के बारे में बड़ी सटीक कविता लिखी हैः-
हर घर में होता है वो इंसान, जिसे हम पिता कहते हैं,
सभी की खुशियों का ध्यान रखते, हर किसी की इच्छा पूरी करते,
खुद गरीब और बच्चों को अमीर बनाते, जिसे हम पिता कहते हैं।
बेटी का शादी,बेटों को मकान, बहुओं की खुशियां, दामादों का मान,
कुछ ऐसे ही सफर में गुजारे वो हर शाम, जिसे पिता कहते हैं।।
पापा, डैडी, बाबूजी चाहे जिस नाम से पिता को पुकारा जाय, प्रत्येक पिता संतानों की सभी सुख-सुविधाओं एवं संतानों के भविष्य को संवारने हेतु अपना एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है। लेकिन आज के मशीनी युग में बच्चे अपने माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं। आजकल की भाग-दौड़ व मोबाइल संसार की आभासी युग में माता-पिता व अन्य सामाजिक रिश्तों में लगातार दूरियां बढ़ती जा रही हैं। हम लगातार समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि फलां बेटे ने अपने माता-पिता को किसी वृद्धाश्रम में छोड़ दिया।आजकल की पीढ़ी को बताना चाहती हूँ कि पिता वो उंगली है जो हमें रास्ता दिखाता है, पिता वह पेड़ है जो जीवन के हर परेशानी पर छाया देता है, पिता वह सीढ़ी है जो जीवन के हर उतार-चढ़ाव पर मजबूती से साथ देता है। इसलिए इस मशीनी युग में माता-पिता को केवल मदर्स डे या फादर्स डे में सिर्फ फेसबुक या व्हाटएप या सोशल मीडिया पर सिर्फ एक पोस्ट कर याद न करे बल्कि उनके जीवन के अंतिम पड़ाव पर उनका सहारा भी बने। सभी पिता और पुत्र को समर्पित….

मनीषा झा

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