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खड़गपुर , समय के इतिहास में यह साल 2020 कई मायनों में अनूठा माना जाएगा। क्योंकि जिस शहर में साल की शुरुआत में ही नगरपालिका चुनाव की गंध महसूस की जा रही थी , वहां चंद महीनों को छोड़ तकरीबन पूरा साल ही कोरोना की भेंट चढ़ गया ।
इस साल के शुरू के दो महीने सामान्य रूप से बीते । इस दरम्यान वार्ड संरक्षण हो जाने से नगरपालिका चुनाव की सरगर्मियां तेज होने लगी । सत्ता की बिसात पर मोहरे बिछाए जाने लगे और चालें चली जाने लगी । मार्च तक होली का त्योहार भी हंसी – खुशी से बीत गया । लेकिन इसके बाद ही कोरोना काल का ग्रहण जनजीवन को अपना ग्रास बनाने लगा । मार्च के अंतिम सप्ताह तक देश के साथ ही शहर की रफ्तार भी लॉकडाउन के रेड सिग्नल के आगे थम गई । सड़क व रेल यातायात अभूतपूर्व रूप से ठप हो गया । प्रवासी श्रमिकों में भगदड़ मची रही । राजमार्गों पर कंधों पर माल – आसबाब लादे बाल – बच्चों के साथ घरों को लौटते श्रमिकों को देखना वेदनादायक अनुभव रहा । सूने पड़े रेलवे स्टेशनों पर अफरा – तफरी मची रही । इस दौरान शहरवासियों ने गरीब व जरूरतमंदों की मदद में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया । लेकिन शहर – शहर और गली – मोहल्ले तक के ग्रीन , रेड और कंटेनमेंट जोन में बंटते जाने से कोरोना को लेकर मचा कोहराम हाहाकार में बदलने लगा। अमूमन रोज आने वाली पॉजिटिव मरीजों की सूची लोगों में सिहरन दौड़ाती रही । अनलॉक की कवायद जारी रहने के बावजूद लॉकडाउन की लाठी अगस्त – सितंबर तक अपनी धमक कायम रखी । त्योहारी मौसम शुरू होने पर लोगों को आशंका हुई कि कोरोना का कहर कहीं दुर्गापूजा और दीपावली की चमक फीकी न कर दे। हालांकि दोनो पर्व हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गए । त्योहार खत्म होते ही शादियों का सिलसिला शुरू हो गया । इस तरह कोरोना काल में पहली बार लोग खुल कर जीने की कोशिश करते नजर आए । यह स्वाभाविक भी था कि क्योंकि कोरोना के डर के चलते अप्रैल – मई में होने वाली अधिकांश शादियां स्थगित हो गई थी । लोग इस बहाने अरमान पूरी कर लेने की कसर मिटाने पर आमादा दिखे ।
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तारकेश कुमार ओझा
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