शहर ये मेरा नहीं है …!!

तारकेश कुमार ओझा’ खड़गपुर :
‘ सच है या डरावना सपना,
मुश्किल में है देश अपना।
मायूसी है, उम्मीदों का सवेरा नहीं है
यकीन है मुझे, शहर ये मेरा नहीं है।
कोरोना की दूसरी लहर ने वास्तव में देश में मुश्किल हालात उत्पन्न कर दिए हैं । अपने प्रदेश में चुनाव अभी चल रहा है । इसलिए परिस्थितियों की भयावहता का अंदाजा नहीं लग पा रहा है । लोगों को शक है कि चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सूबे या शहर में भी कोरोना विधि को लेकर प्रशासन की सख्ती बढ़ेगी । क्योंकि मामले लगातार बढ़ रहे हैं । नौबत लॉक डाउन या जनता कर्फ्यू की भी आ सकती है ।


वर्तमान की बात करें तो शहर की सूरत भी लगातार बदल रही है । मेहनतकश वर्ग रोजी – रोजगार के संकट की आशंका से बुरी तरह से परेशान हैं । कारोबारी भी कम तनावग्रस्त नहीं हैं । लॉकडाउन लगने की स्थिति में संभावित नुकसान की आशंका से डरे हुए हैं। सबसे ज्यादा त्रासद परिस्थिति वैक्सीन की मारामारी को लेकर है । क्योंकि वैक्सीन के मामले में हालत एक अनार , सौ बीमार वाली है । इसके चलते वृद्ध ही नहीं वयोवृद्ध लोगों को भी वैक्सीन के लिए तकरीबन रोज ही टीकाकरण केंद्रों के सामने कतार में खड़े होना पड़ रहा है । इसके बावजूद अधिकांश को निराश लौटना पड़ रहा है । कोरोना काल का कहर दुनिया छोड़ चुके मुर्दों पर भी टूट रहा है । हर मुर्दा और मरीज शक के दायरे में है कि कहीं उसमें कोविड वायरस का संक्रमण तो नहीं । शवों को परीक्षण की अग्नि परीक्षा देने पड़ रही है । जिल्लतें जिंदा इंसानों के सामने भी कम नहीं है । जीवन बचाएं या जीविका । वायरस से लड़ें या नित नई चुनौतियों से । मुश्किलों से जूझने को प्राथमिकता दें या कोरोना विधि के पालन को । गलती से भी मास्क नीचे उतर गया , तो लाठी फटकाराती पुलिस सामने खड़ी है । वाकई परिदृश्य डरावना है । पांच दशकों के जीवन में देश – प्रदेश या अपने शहर का यह रुप मैने पहले कभी नहीं देखा था ।

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