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खड़गपुर और आस-पास, मंदिरों का गांव-पथरा, एक उपेक्षित पर्यटक स्थल

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खड़गपुर और आस-पास, मंदिरों का गांव-पथरा, एक उपेक्षित पर्यटक स्थल

मनीषा झा, खड़गपुरः- कंसावती नदी के किनारे स्थित पथरा (पाथरा) गांव को मंदिरों का गांव कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। दो सौ साल पुराने गांव में लगभग 34 मंदिरें हैं। यह खड़गपुर शहर से 15-20 कि.मी. दूरी पर स्थित है। गुप्त वंश के समय पथरा ताम्रलिप्त बंदरगाह का पृष्ठ प्रदेश था। आठवीं से बारहवी सदी तक पथरा हिंदू, जैनों, बौद्धों का महत्वपूर्ण स्थान था। अक्टूबर 1961 में खुदाई से विष्णु लोकेश्वर की मूर्ति प्राप्त हुई ह जो हिंदू और बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाती है।
कहा जाता है कि मजूमदार नामक धनी परिवार के लोगों ने पथरा गांव में मंदिरों के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था। 1732 ईस्वी में नबाब अलवर्दी खां ने विध्यानंद घोषाल को रत्नाचक परगना का राजस्व संग्रहकर्ता बनाकर भेजा। राजस्व संग्रहकर्ता रहते हुए विध्यानंद ने हिंदू भक्तों के लिए कई मंदिरों का निर्माण करवाया। इससे नाराज होकर नबाब ने विध्यानंद को हाथी के आगे फिकवा दिया, लेकिन हाथी ने कुचलने से मना कर दिया। तब से इस गांव का नाम ” पथरा ” पड़ गया क्योंकि पथरा का अर्थ हैः- “हाथी के पांव के बीच से बच निकलना “। इसके बाद घोषाल परिवार ने अपने उपनाम को बदलकर मजूमदार रख लिया और मंदिरों का निर्माण 18 वीं शताब्दी तक जारी रखा। इन परिवार के लोगों को गांव छोड़ने के कारण मंदिरों पर असमाजिक तत्वों का कब्जा हो गया और मंदिरों के रख-रखाव में कमी हो जाने के कारण कुछ मंदिर जीर्ण अवस्था में पहुँच गये हैं।वर्तमान में पुरातत्व विभाग कोलकाता को इसके देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।
मंदिरों के अलावा कंसावती नदी का मनमोहक और विहंगम दृश्य खड़गपुर और आस-पास के लोगों को बरबस सर्दी के मौसम में पिकनिक के आनंद के लिए आकर्षित करती है। लेकिन पथरा गांव को एक पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित करने की आवश्यकता है ताकि स्थानीय निवासियों को रोजगार प्राप्त हो सके।

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