April 6, 2025

लोकोमोटिव उत्पादन में बना नया कीर्तिमान, 1681 लोकोमोटिव का उत्पादन करके भारत ने अमेरिका और यूरोप को पीछे छोड़ा 

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लोकोमोटिव उत्पादन में बना नया कीर्तिमान

 

1681 लोकोमोटिव का उत्पादन करके भारत ने अमेरिका और यूरोप को पीछे छोड़ा

 

देश में रेलवे लोकोमोटिव का उत्पादन बढ़कर 1681 हो गया है जो संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के कुल लोको उत्पादन से भी अधिक है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश के सभी लोकोमोटिव इकाइयों की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए रेलवे बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा कि पिछले साल भारत में 1472 लोकोमोटिव का उत्पादन हुआ था। इस तरह इस वर्ष पिछले साल की तुलना में 19% अधिक लोकोमोटिव का उत्पादन हुआ है।

 

 

 

मेड इन इंडिया की अवधारणा को मजबूत करने के उद्देश्य से लिए गए निर्णयों के आलोक में देश में लोकोमोटिव का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 2004 से 2014 तक की अवधि में देश में कुल 4695 लोकोमोटिव का उत्पादन हुआ था जिसका राष्ट्रीय वार्षिक औसत 469.5 रहा जबकि 2014 से 2024 के बीच देश में 9168 रेलवे लोकोमोटिव का उत्पादन हुआ और वार्षिक औसत करीब 917 रहा। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1681 लोकोमोटिव का उत्पादन हुआ है।

 

 

 

इस वर्ष चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स में 700, बनारस लोकोमोटिव वर्क्स में 477, पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स में 304, मधेपुरा में 100 और मरहौरा में 100 लोकोमोटिव का उत्पादन हुआ है। देश में सबसे अधिक लोकोमोटिव मालगाड़ियों को चलाने के लिए उत्पादित किए गए। वित्तीय वर्ष 2024-25 में बनाए गए 1681 लोकोमोटिव में WAG 9/9H लोकोमोटिव 1047, WAG 9HH लोकोमोटिव 7, WAG 9 Twin 148, WAP 5 लोकोमोटिव 2, WAP 7 लोकोमोटिव 272, NRC लोकोमोटिव 5, WAP 12 B लोकोमोटिव 100, WDG 4G/6G लोकोमोटिव 100 शामिल रहे।

 

 

के अन्नामलाई

अध्यक्षभाजपा तमिलनाडु

एवं भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत अधिकारी

पम्बन ब्रिज में दिखती है देश की बुलंदी 

 

जब देश का नेतृत्व मजबूत होता है और नए विजन के साथ काम करता है तो नए कीर्तिमान बनते हैं। ऐसी संरचनाएं तैयार होती हैं, जिस पर देश गर्व करे, जिसे देख हर नागरिक अपना सीना चौड़ा कर ले और राष्ट्र की उन्नति के लिए अपना सर्वोत्कृष्ट देने हेतु प्रेरित हो जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में देश को एक ऐसा ही शक्तिशाली और दूरदर्शी नेतृत्व प्राप्त हुआ है। विगत 10 वर्षों में राष्ट्र ने अनेक नई ऊंचाइयों को छुआ है। देश की जीवन रेखा भारतीय रेल ने भी इस अवधि में नए प्रतिमान गढ़े हैं। वंदे भारत, अमृत भारत और नमो भारत की त्रिवेणी से देश की ट्रेनों को एक नया विकसित आयाम प्राप्त हुआ है। कश्मीर तक सीधी ट्रेन चलाने के लिए चिनाब और अंजी ब्रिजों के निर्माण से देश का मस्तक ऊंचा हुआ है। इसी क्रम में दक्षिण में रामेश्वरम को देश की मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए बनाए गए नए पांबन पुल से देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को एक नई पहचान मिली है।

आधारभूत संरचनाओं की मजबूती के लिए बनाई जा रही बड़ी परियोजनाओं के सफलतापूर्वक पूर्ण होने से यह बात साबित हो गई है  कि देश की विकास की धारा और उसकी गति सही दिशा में है। समुद्री लहरों की चुनौती को पार करते हुए पुल का निर्माण करना एक दुष्कर कार्य माना जाता है। इस प्रकार के कार्य को संपादित करने में सामान्यतः दशकों  लग जाते हैं जिससे परियोजना की लागत भी कई गुना बढ़ जाती है। लेकिन प्रधानमंत्री का स्पष्ट विजन कि जिन परियोजनाओं का वह शिलान्यास करते हैं, उसका उद्घाटन भी वही करते हैं, ने देश की ब्यूरोक्रेसी और टेक्नोक्रेसी को सही समय पर योजनाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांबन पुल का शिलान्यास 2019 में किया था। 5 वर्षों की अवधि में रामेश्वरम और भारत की मुख्य भूमि के बीच समंदर के ऊपर नया पुल बनकर तैयार हो गया। और अब नरेन्द्र मोदी ही इस पुल का उद्घाटन करने जा रहे हैं। इससे पूरे देश में उत्साह है। 2.08 किलोमीटर लंबा यह पुल कई मामलों में विशिष्ट है।  इस पुल में 18.3 मीटर के 99 स्पैन और 72.5 मी का एक वर्टिकल लिफ्ट स्पैन है। यह पुराने पुल की तुलना में तीन मीटर ऊंचा है जिससे बड़े जहाज को पार करने में भी सुगमता होगी। इसके सब-स्ट्रक्चर में 333 पाइल्स है और इसकी संरचना इस तरह से तैयार की गई है कि वर्षों तक रेलवे एवं समुद्री परिचालन सुरक्षित तरीके से होता रहे। इस पुल में एंटी कोरोजन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। पॉलीसिलाक्सासिन पेंट, उन्नत किस्म का स्टेनलेस स्टील और फाइबर रिइंनफोर्स प्लास्टिक के उपयोग से पुल को ऐसी मजबूती मिली है कि यह दीर्घकाल तक टिकाऊ रहेगा।

पम्बन पुल के निर्माण से भारत की डिजाइन एवं सर्टिफिकेशन में तकनीकी श्रेष्ठता स्थापित हुई है। पूरा विश्व अब यह जान गया है कि आईआईटी चेन्नई और आईआईटी बॉम्बे जैसी संस्थाएं समुद्री पुल के डिजाइन का चुनौतीपूर्ण कार्य मुस्तैदी के साथ करने में सक्षम हैं।

रामेश्वरम द्वीप भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक विरासत का अभिन्न अंग है। श्री रामेश्वरम लिंग की स्थापना रामायण काल में प्रभु श्री राम द्वारा की गई। माता सीता की खोज में लंका जाने के क्रम में प्रभु श्री राम रामेश्वरम में रुके और फिर समुद्र पर पुल बनाने से पहले भगवान शिव की आराधना की। श्री रामेश्वरम स्थित शिवलिंग और श्री रामेश्वरम मंदिर से करोड़ों भारतीयों की आस्था जुड़ी हुई है। प्रत्येक वर्ष लाखों लोग प्रभु के दर्शन के लिए रामेश्वरम जाते हैं। नए पांबन पुल के निर्माण के साथ ही एक बार फिर से पूरे देश से रामेश्वरम की सीधी रेल कनेक्टिविटी स्थापित हो गई है जिससे रामेश्वरम जाने वाले तीर्थ यात्रियों को काफी लाभ होगा। इससे रामेश्वरम की आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होगी और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसरों का सृजन होगा।

वस्तुतः भारत की प्रगति, नवाचार और विरासत का एक साथ प्रतिनिधित्व करने वाला नया पांबन पुल देश के इंजीनियरिंग कौशल और मजबूत नेतृत्व का प्रतिनिधि भी बन गया है।

 

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