कैसी अजब हवायें चली।
खौफे”कोरोना”गली गली।
सुरसा सी मुंह को बाये।
आगे ही बढती जाये।
एहतियात,नसीहते खौफ।
दफ्न सारे दिल के शौक।
बुजुर्गो के लिये है आर्डर।
घर से न निकले बाहर।
उठना,टहलना खाना सोना।
निषेध, कही आना जाना।
पत्नी सी रूठी नीद रानी।
मिन्नतों से कब है मानी।
मित्रों के साथ चाय पानी।
वो बातें हुईं कब की पुरानी।
विवशता है, मगर भलाई है।
हम सबकी यह लड़ाई है।
अभिनंदन गुप्ता
. . . . . . . . . . . . . .