इंदौर. यह फोटो तो अपने आपमें एक कहानी है .मजदूरों के देशव्यापी पलायन की त्रासदी की .कोई अपने दिवंगत बेटे का ऐसे झूला लेकर अपने वतन लौटता है .पर वह लौट रहा है एक झूले को सड़क पर डगराते हुए .यह बहुत सी कहानियों में एक है जो हमें स्तब्ध कर दे रही हैं .
http://www.janadesh.in/home/newsdetail/968
इंदौर। परसों रात धार रोड़ पर कलारिया गांव नाले किनारे ईंट भट्टे में काम करने वाले आदिवासी युवक नन्हें जू का इकलौता बेटा शुभम चल बसा।
उसे परसों से तेज बुखार था, लेकिन कोई क्लिनिक चालू नहीं था। जिला अस्पताल भी सुबह खुलता है, तो नन्हें जू की पत्नी सरोज बाई मेडिकल स्टोर से क्रोसिन सीरप ले आई और बच्चे को पिला दिया। सुबह चार बजे बच्चे को तीन चार हिचकी आई और उसकी सांसे थम गईं। पड़ोसी की बुजुर्ग महिला को झोपड़ी में बुलाया गया, तो उसने कह दिया कि रोने धोने से कोई फायदा नहीं। यह चला गया। दोनों सुबह तक रोते रहे। फिर तय किया अपने घर लौट चलें। इनका गांव ग्वालियर से 80 किलोमीटर दूर है। गांव का नाम घाटा है। कल दोपहर बारह बजे दोनों खाली झौला ढरकाते हुए एबी रोड चौधरी का ढाबा से गुजर रहे थे। तभी एक स्कॉर्पियों आई और उसमें बैठी महिला ने चाय नाश्ता पानी कराया। दोनों को ताकत मिल गई। सरोज बाई की आंखों से आंसू बह रहे थे। नन्हें जू ने बताया कि अब कभी इंदौर नहीं आएंगे। पैदल गांव जाने का साहस कैसे जुटाया, तो उन्होेंने कहा -और कोई रास्ता नहीं है। जब बच्चा नहीं रहा, तो खाली झूला क्यों ढरकाते ले जा रहे हो? जवाब था -सरोज का कहना है शुभम का शरीर हमारे साथ नहीं है। महसूस करो कि वो झूले में सो रहा है। बस इसी के सहारे गांव पहुंच जाएंगे।
– गौरी दुबे